दीवाली या दीपावली क्यों मनाई जाती है?




निवेदकः आचार्य पं. सतीश कुमार शास्त्री 9555869444, 9210103470

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दीपावली क्यों मनाई जाती है?

सबसे पहले तो दीपावली को दिवाली दीपावली कहा जाता है ऐसा नाम क्यों पड़ा है उसके नाम के अर्थ से ही आप पता लगा पा रहे हैं कि दीप मालिका अनेक दीपों की श्रंखला को दीपावली कहते हैं दिवाली शब्द दीपावली का अपभ्रंश है इसका कोई सच में प्रयुक्त अर्थ नहीं है 
दीप=दिया या दीपक 
अवली=अनेकों की संख्या में इस प्रकार सन्धि करने पर बना दीपावली।
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अनेक रामायण के अनुसार राम के 14 वर्ष के उपरांत अयोध्या में पधारने के उपलक्ष में दीपावली मनाई जाती है।

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12 वर्ष के बनवास  और 13वे वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की घर वापसी के उपलक्ष्य में दिवाली मनायी जाती है।

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निवेदकः पं. सतीश कुमार शास्त्री

अन्य पौराणिक इतिहास के अनुसार दीवाली का जश्न मनाने के पीछे धन की देवी लक्ष्मी  समुद्र से उत्पन्न हुई थीं । हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, बहुत समय पहले अमृत (अमर होने का पदार्थ) और चतुर्दशरत्न प्राप्त करने के उद्देश्य से देवताओँ और असुरों दोनों ने सागर मंथन किया। देवी लक्ष्मी क्षीर सागर (दूध के सागर के राजा) की बेटी कार्तिक के महीने में अमवस्या के दिन पैदा हुई जिनकी शादी भगवान विष्णु से हुई। यही कारण है कि यह दिन दिवाली के त्यौहार के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है।

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 पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने सभी तीनों लोकों को बचाने के लिए अपने वामन अवतार में पृथ्वी पर सत्तारूढ़ एक शक्तिशाली दानव राजा बलि को हराया था। भगवान् विष्णु उस के पास पहुंचे और 3 पैर जगह माँगी। बलि ने हाँ कहा इसलिये भगवान् विष्णु ने अपने तीन पैर जगह में सभी तीनों लोकों को माप लिये। दिवाली इस बुराई की सत्ता पर इस जीत को याद करने के लिए हर साल मनायी जाती है।

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निवेदकः पं. सतीश कुमार शास्त्री

भागवत पुराण के अनुसार एक और इतिहास है कि शक्तिशाली क्रूर और भयानक राक्षस राजा नरकासुर था जिसने आकाश और पृथ्वी दोनों पर विजय प्राप्त की थी। 16 हजार एकसौ कन्याओं को बचाने के उद्देश्य से जो राक्षस द्वारा कारागार में बंद कर दी गयी थी भगवान कृष्ण ने ही उसे मारा था। लोग नरकासुर की वध से बहुत प्रसन्न  थे , और बहुत प्रसन्नता के साथ उन्होंने इस घटना का उत्सव मनाया। अब यह पारम्परिक रूप से  मानाया जाता है कि दीवाली का वार्षिक समारोह के द्वारा इस घटना को याद किया जाता है।

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निवेदकः पं. सतीश कुमार शास्त्री

दीवाली का उत्सव के पीछे एक अन्य पौराणिक इतिहास है कि बहुत समय पहले अनेक दानवो में एक रक्तबीज दानव  था, जिससे लड़ाई में सभी देवता हर गये क्यों जितनी खून की बँद गिरती उतने दैत्य उत्पन्न हो जाते थे। और सारी पृथ्वी और स्वर्ग हिरासत में ले लिया। तब माँ काली ने देवताओं, स्वर्ग और पृथ्वी को बचाने के उद्देश्य से देवी दुर्गा के माथे में जो तीसरे नेत्र के फलक से जन्म लिया था। राक्षसों के विनाश के बाद उन्होंने अपना नियंत्रण खो दिया और जो भी उनके सामने आया उन्होंने हर किसी का विनाश करना शुरू कर दिया था। अथवा रक्तबीज से उत्पन्न अनेकों असुरों का विनाश करती हुई भगवती भद्रकाली ने सम्पूर्ण सामर्थ के साथ पृथ्वी पर पदार्पण किया जैसे ही पृथ्वी पर पैर रखना चाहती थी पृथ्वी कहीं रसातल में ना चली जाये इसलिये भगवान् शिव सम्पूर्ण संसार की रक्षा करने के लिये भगवती के  पाद तलके मार्ग में लेट गये और भगवती को आभास हुआ कि मेरे पति देव के वक्ष पर मेरा चरण पड़ गया है सारा क्रोध शान्त हो गया और दान्तों से जीव काटती हुई शान्त और क्षमा मुद्रा में हो गई  देश के कुछ भागों में, उस शक्ति काली की पूजा देवताओं ने जो दीपोत्सव मनाया उस उपलक्ष में उसी समय से ही यह दिवाली पर देवी काली की पूजा करके मनाया जाता है।

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निवेदकः पं. सतीश कुमार शास्त्री

 आधुनिक जैन धर्म के संस्थापक, वर्धमान महावीर को, समान दिन पर ज्ञान की प्राप्ति हुई। यही कारण है कि जैन धर्म के लोग भी दिवाली समारोह मनाते है।

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 दिवाली का सिखों के लिये भी विशेष महत्व है क्योंकि उनके गुरु अमर दास ने एक साथ गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दिवाली पर एक अवसर संस्थागत किया था। कुछ स्थानों पर यह माना जाता है कि, दिवाली ग्वालियर किले से मुगल बादशाह जहांगीर की हिरासत से छठे धार्मिक नेता, गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई की स्मृति में मनायी जाती है।

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पांच दिनों के दिवाली समारोह हैं:

निवेदकः पं. सतीश कुमार शास्त्री

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धनत्रयोदशी या धनतेरस या धनवन्तरि त्रयोदशी: धनतेरस का अर्थ है(धन का अर्थ है संपत्ति और त्रयोदशी का अर्थ है 13वाँ दिन) चंद्र मास के 2 छमाही के 13वें दिन में घर के लिए धन का आना। इस शुभ दिन पर लोग बर्तन, सोना खरीदकर धन के रूप में घर लाते है। यह भगवान धनवंतरी (देवताओं के चिकित्सक) की जयंती (जन्मदिन की सालगिरह) के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिनकी (देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मंथन के दौरान) उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी।🙏🏻

निवेदकः पं. सतीश कुमार शास्त्री

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नरक चतुर्दशी: नरक चतुर्दशी 14वें दिन पडती है, जब भगवान कृष्ण (भगवान विष्णु के अवतार) ने राक्षस नरकासुर को मारा था। यह बुराई की सत्ता या अंधकार पर अच्छाई या प्रकाश की विजय के संकेत के रुप में उत्सव मनाया जाता है। आज के दिन लोग जल्दी (सूर्योदय से पहले) सुबह उठते है, और एक खुशबूदार तेल और स्नान के साथ ही नये कपडे पहनकर तैयार होते है।तब वे सभी अपने घरों के आसपास बहुत से दीपक जलाते है और घर के बाहर रंगोली बनाते है। वे अपने भगवान कृष्ण या विष्णु की भी एक अनूठी पूजा करवाते है। सूर्योदय से पहले स्नान करने का महत्व गंगा के पवित्र जल में स्नान करने के बराबर है। पूजा करने के बाद वे राक्षस को हराने के महत्व में पटाखे जलाते है। लोग पूरी तरह से अपने परिवार और दोस्तों के साथ दिवाली  बनाते हैं।

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निवेदकः पं. सतीश कुमार शास्त्री

लक्ष्मी पूजा

 कार्तिक मास की अमावस्या आज के दिन दीपावली की अर्धरात्रि के समय सिंह लग्न में भगवती लक्ष्मी जी का समुद्र मंथन के समय समुद्र से कमल के पुष्प पर अरुण चतुर्भुज आ धारण की हुई दो हाथों में धन का कलश और दो हाथों में कमल पुष्प ऊपर की ओर धारण किए हुए गजराज यानी दो हाथी जलकुंभी से भगवती का अभिषेक करते हुए इस प्रकार लक्ष्मी जी समुद्र से प्रकट हुई उसी उपलक्ष में दीपावली की रात्रि में महालक्ष्मी का पूजन होता है यह मुख्य दिन दीवाली जो लक्ष्मी पूजा (धन की देवी) और गणेश पूजा (सभी बाधाओं को हटा वाले और जो ज्ञान के देवता हैं) के साथ पूरी होती है। महान पूजा के बाद वे अपने घर की समृद्धि और भलाई का स्वागत करने के लिए सड़कों और घरों पर मिट्टी के दीये जलाते है।

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प्रतिप्रदा के दिन गोवर्धन पूजा: यह उत्तर भारत में गोवर्धन पूजा (अन्नकूट) के रूप में मनाया जाता है। भगवान कृष्ण द्वारा इंद्र के गर्व को पराजित करके लगातार बारिश और बाढ से बहुत से लोगों (व्रजवासी) गोप और गोपियों के जीवन की रक्षा करने के महत्व के रूप में इस दिन उत्सव मनाते है। 56 भोग अन्नकूट  मनाने के महत्व के रूप में लोग बडी मात्रा में अनेक व्यंजन बनाकर घरों की सजावट, मंदिरों  की सजावट के साथ गोबर के गोवर्धन बनाते हैं (कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने के प्रतीक के रूप में) गोवर्धन पूजा करते हैं।

निवेदकः पं. सतीश कुमार शास्त्री

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बलि-प्रतिप्रदा

यह दिन कुछ स्थानों पर दानव राजा बलि पर भगवान् विष्णु (वामन) की जीत देवों के द्वारा हर्षोल्लास मनाने के  उपलक्ष में भी बलि-प्रतिप्रदा के रूप में मनाया जाता है। 

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कुछ स्थानों जैसे महाराष्ट्र में यह दिन पडवा या नव दिवस (अर्थात् नया दिन) के रुप में भी मनाया जाता है और सभी पति अपनी पत्नियों को उपहार देते है। गुजरात में यह विक्रम संवत् नाम से कैलेंडर के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है।

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निवेदकः पं. सतीश कुमार शास्त्री

यम द्वितीया या भाई दूज: यह भाइयों और बहनों का त्यौहार है जो एक दूसरे के लिए अपने प्यार और देखभाल का प्रतीक है। यह जश्न मनाने के महत्व के पीछे यम की कहानी (मृत्यु के देवता) है। आज के दिन यम अपनी बहन यामी (यमुना) से मिलने आये और अपनी बहन द्बारा उनका आरती के साथ स्वागत हुआ और उन्होंने साथ में खाना भी खाया। उन्होनें अपनी बहन को उपहार भी दिया

निवेदकः पं. सतीश कुमार शास्त्री

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पांचों त्योहारों की जानकारी

धनतेरस आयुर्वेद प्रवर्तक भगवान् धनवन्तरि जयन्ती 22 अक्टूबर शनिवार इस दिन धनतेरस 18:02 यानी कि शाम को 6 बजकर 2 से प्रारम्भ होगी अगले दिन शाम को 6 बजकर 3 मिनट तक धनतेरस रहेगी।

(धनतेरस भगवान् धनवन्तरि आयुर्वेद प्रवर्तक भगवान् का समुद्र से रात्रि में समुद्र से प्राकट्य हुआ था तथा भगवान् कुबेर का जन्मदिन रात्रि काल माना जाता है)

यह त्यौहार स्वास्थ्य के लाभ के लिए भगवान् धनवन्तरि का पूजन और घर में कुछ न कुछ धन लेकर के आते हैं क्योंकि कुबेर भगवान् का भी दिन है🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


यमदीप दान नरक चतुर्दशी 23 अक्टूबर रविवार 

निशा (रात्रि) काल के प्रथम प्रहर में यानी कि संध्याकाल में यमदीप का विधान है इसीलिये छोटी दिवाली जमदिया शाम को 6:03 पर त्योहार प्रारम्भ होगा)

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दीपावली 24 अक्टूबर सोमवार इस दिन में 17:27 पर (शाम को 5 बजकर 27 मिनट पर) अमावस्या प्रारम्भ होगी। (दीपावली की रात्रि भर जलने वाले दीपक में कम घी और तेल डालें प्रातः 4:00 बजे से पहले आपके दीपक शान्त होने चाहिये, और पूजा स्थल पर कुशा रख दें और ऊपर से वस्त्र से ढक दें क्योंकि 4:29 बजे रात्रि में सूतक लग जायेगा)

24 तारीख के उपरान्त जैसे ही रात्रि में तारीख बदलती है 25 तारीख लगेगी 25 तारीख की सुबह ग्रहण का सूतक 4:29 मिनट पर प्रारम्भ हो जायेगा।)

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खग्रास सूर्य ग्रहण 25 अक्टूबर मंगलबार 

(इस दिन कोई त्यौहार नहीं होगा और ना ही अमावस्या पितृ कार्य होगा क्योंकि ग्रहण का सूतक रहेगा)


*ग्रहण प्रारम्भ होगा 4:29 दिन में शाम से*

 *शाम को 6:32 पर पड़ता हुआ सूर्य ग्रहण सूर्य बिम्ब ग्रसित अस्त हो जायेगा*

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अन्नकूट गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर बुधवार

(अन्नकूट गोवर्धन पूजा का कार्यक्रम मध्यान्ह काल में होता है भगवान् श्री कृष्ण ने ही गिरिराज महाराज का रूप धारण करके उन 56 भोगों को स्वीकार किया था

इस दिन से भगवान् ने गिरिराज गोवर्धन पर्वत को कनिष्ठ का अंगली पर 7 दिन 7 रात तक धारण किया था)

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विश्वकर्मा पूजा 26 अक्टूबर बुधवार

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 यम द्वितीय (भैया दूज) 27 अक्टूबर गुरुवार

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