शरत्पूर्णिमा Sharatpoornima

 आचार्य सतीश कुमार शास्त्री 9555869444

शरत् पूर्णिमा 

       विशेष रूप से शरद पूर्णिमा एक ऐसा त्यौहार है जो सभी प्रकार से आनन्ददायक होता है हमारे शास्त्रों में प्रत्येक ऋतु का त्योहार मनाने का वर्णन आता है जैसे बसंत ऋतु में बसंत पंचमी, वसंतोत्सव के रूप में होली का मनाई जाती है ग्रीष्म ऋतु में गंगा दशहरा

वर्षा ऋतु में श्रावणी कर्म का महत्व है रक्षाबन्धन। हेमन्त ऋतु में जैसे प्रकाश पर्व दीपावली मनाई जाती है उसी प्रकार से शरद ऋतु में शरत् पूर्णिमा यह ऋतु  कालिक त्यौहार है पुराणों में यत्र तत्र शरद पूर्णिमा का वर्णन मिलता है रामचरितमानस में भी गोस्वामी तुलसीदास जी ने कई स्थानों पर शरद ऋतु का वर्णन किया है श्रीमद्भागवत महापुराण में भी शरद ऋतु के वर्णन को लेकर दिव्य महारास की परिचर्चा की गई है जानते हैं इस दिन अमृत वर्षा का क्या महत्व है 👉🏻अमृत और चंद्रमा दोनों ही समुद्र से उत्पन्न हुये हैं इसलिये जिस दिन शरत् पूर्णिमा आती है उस दिन समुद्र मंथन से चंद्रमा जी की उत्पत्ति हुई एक विरोधाभास की बात यह है कि चन्द्रमा अत्रि और अनुसूया के पुत्र भी हैं और चन्द्रमा की उत्पत्ति समुद्र से भी हुई है यह दोनों बातें पृथक हैं लेकिन दोनों का प्रमाण शास्त्रों में पुराणों में दिया गया है लक्ष्मी जी पहले भी थी और समुद्र से भी लक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव हुआ है जैसे मान लिया जाय कि जब जीव शरीर धारी होते हैं तो उनकी पहचान शरीर के रूप में होती है जब वे अनंग आत्मा के रूप में होती है यही कारण है अत्रि अनुसूया के पुत्र चन्द्रमा दिव्य चन्द्र आत्मा परमात्मा रूप होकर के और समुद्र से उत्पन्न हुये और इस प्रकार से जब शरद पूर्णिमा के दिन हुए तो अमृत की फुहारै निकल रही थी चन्द्रमा जी अन्तरिक्ष में विराजमान हो गयै अभी से सभी लोग यह भाव रखते हैं कि शरत् पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा जी अमृत की वर्षा करते हैं इसीलिये सभी लोग खीर बनाकर और आप खुले आकाश में रखते हैं जिससे अमृत की वर्षा का अमृत प्रसाद के रस प्राप्त हो सके।

    शरत् पूर्णिमा के दिन भगवान ने ब्रजमण्डल प्रदेश में (वृन्दावन में) दिव्य महारास शरत् पूर्णिमा के दिन ही प्रारम्भ किया है इसी दिन भगवान ने गोपियों को बुलाने के लिये बड़े मधुर स्वर से बांसुरी बजाई आज भी श्रीबांके बिहारी आदि दिव्य श्री कृष्ण मंदिरों में भगवान् के हाथ में सिर्फ आज के दिन के लिये ही शरद पूर्णिमा को बन्शी दी जाती है।

शरत् पूर्णिमा "निर्णयामृत" इस ग्रंथ में प्रदोष और निशीथ  दोनों में होने वाली पूर्णिमा ली जाती है यदि पहले दिन निशीथत व्यापिनी हो और दूसरे दिन प्रदोष व्यापिनी ना हो तो पहले दिन व्रत करना चाहिये।

  शरत्पूर्णिमा दान और दानका फल
१- इस दिन काॅंसे के पात्र में  घृत (घी) भरकर स्वर्ण सहित ब्राह्मण को दान देने से व्यक्ति ओजस्वी होता है जो व्यक्ति आलसी और निराश अल्पज्ञ होते हैं उनको ऐसा दान करना चाहिये।
  
शरत्पूर्णिमा पूजा,आरती फल और इष्टदेव
२-अपराह्न में हाथियों का निराजन करें तो उत्तम फल की प्राप्ति होती है ३-अन्य प्रकार के अनुष्ठान् करें तो उनकी सफलता में विशेष सिद्धि होती है। इसके अतिरिक्त आश्विन मास के शुक्ल निशीथ व्यापिनी पूर्णिमा को प्रभात के समय आराध्य देव को श्वेत वस्त्र आभूषणों से श्वेत चन्दन चर्चित कर षोडशोपचार से देव परम पुरुष पुरुषोत्तम भगवान् श्री कृष्ण का पूजन करना चाहिये और रात्रि के समय उत्तम गो दुग्ध यानी गाय के दूध की खीर उसमें गाय का घी मिला दें और सफेद खान यानी बुरा मिलाकर अर्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण करें साथ ही पूर्ण परमात्मा के मध्य अवकाश में स्थित होने पर उनका पूजन करें और पूर्व प्रकार की अर्थात जो खीर बनाई है उस खीर का भगवान को नैवेद्य अर्पण करें तत्पश्चात् उस खीर को खुले आकाश में रख दे और अर्धरात्रि उपरान्त तक वह खीर आकाश में खुले आकाश में रखी रहे दें जिससे भावात्मक या विचारधारा है कि चन्द्रमा के चकोर से अमृत की फुहारें निकलेंगी और वह उस खीर को प्राप्त होंगे इस प्रकार वह खीर रूपी प्रसाद अमृत हो जाएगा आज ही यह भावना रहती है कि उस खीर को खाने वाले लोग रोग से ग्रस्त न हों उनके रोग कष्ट कट जाते हैं इसलिये शरत् पूर्णिमा का विशेष महत्व है शरत् पूर्णिमा के दिन सुई में धागा पुराने का चन्द्रमा की रोशनी में सुई में धागा पिरोने से आंखों की रोशनी बढ़ती है । शरत् पूर्णिमा के इष्ट देव भगवान् श्रीकृष्ण हैं और इष्ट देवियां श्रीराधिका आदि सभी गोप बधू हैं।

ब्रज मण्डल में शरत्पूर्णिमा 
ब्रज के प्रमुख ठाकुर जी श्रीमत्कुञ्ज बिहारी (श्री बांके बिहारी) के सहित सभी ठाकुर शरत् पूर्णिमा के दिन श्वेत वस्त्र सभी श्वेत श्रृंगार में होते हैं समूचा ब्रजमडल शरद पूर्णिमा के दिन श्वेत छटा धारण कर लेता है

ब्रज के 12 कुंज है
पुष्पा कुंज, फल कुंज, रस कुंज,
मधु कुंज, गो कुंज, द्वार कुंज, 
नवकुंज, शशिकुंज, प्रेम कुंज,
शिद्धव कुंज, लक्ष्मी कुंज, तुलसी कुंज।

ब्रज के सात सागर है
ध्रुव सागर, गोपाल सागर,
कनक सागर, गोप सागर,
बैकुंठ सागर, लक्ष्मी सागर,
क्षीरसागर।

ब्रज के 12 अधिवन है
परमब्रह्म मथुरा,
राधाबल्लभ राधाकुण्ड,
यशोदानन्दन नन्दगांव,
नवल किशोर दानगढ़,
ब्रज किशोर ललित ग्राम,
राधाकृष्ण वृषभानपुर,
गोकुलेंद्र गोकुल,
कामधेनु बलदेव,
गोवर्धन नाथजी गोवर्धन,
ब्रजवट जाववट,
युगल किशोर वृंदावन,
राधारमण संकेतवन।

ब्रज के 40 बिहारीजी
अजन बिहारी, अंकुर बिहारी,
अप्सरा, उद्धव, कोकिला, कुंजबिहारी, किलोल, गोविंद, चिंताहरण, चंद्र, चतुर, तुष्णावर्त, दानबिहारी, दावानल, पूतना, नवलबिहारी, प्रेमबिहारी, पिता बिहारी, बांकेबिहारी, बहुल बिहारी, ब्रह्मांड बिहारी, प्रेम बिहारी, वृह्मांड बिहारी,
बिछुल बिहारी, मथरोड़ बिहारी, मानबिहारी, मोर बिहारी, रासबिहारी, रसिक बिहारी, रमण बिहारी,
ललित बिहारी, ब्रज बिहारी, बन बिहारी, बुद्ध बिहारी, वेदबिहारी, संकेत बिहारी, शाक बिहारी, श्री बिहारी, शृंगार बिहारी, सत्यनारायण बिहारी, शांतनु बिहारी।

ब्रज के पंच पर्वत है
चरण पहाड़ी (कामवन),
चरण पहाड़ी (कामर),
नन्दगांव (शिव),
बरसाना (ब्रह्म)
गोवर्धन (विष्णु)।

 ब्रज के सात कदमखण्डी है
गोविंद स्वामीजी, पिसावा,
सुनहरा, करहला, गांठौली,
उद्धवक्यारी, दौऊ मिलन की।

ब्रज के हिंडोला
श्री कुण्ड, करहला, संकेत, आजनोखर, रासौली, गहवरवन, वृंदावन, शेषशायी।

 ब्रज के प्रमुख सरोवर है
सूरज सरोवर, कुसुम सरोवर,
विमल सरोवर, चंद्र सरोवर,
रूप सरोवर, पान सरोवर,
मान सरोवर, प्रेम सरोवर,
नारायण सरोवर, नयन सरोवर।

 ब्रज की सोलह देवी है
कात्यायनी देवी, शीतला देवी,
संकेत देवी, ददिहारी, सरस्वती देवी, वृन्दादेवी, वनदेवी, विमला देवी,
पोतरा देवी, नरी सैमरी देवी,
सांचौली देवी, नौवारी देवी,
चौवारी देवी, मथुरा देवी l
ब्रज यात्रा  में आनन्द आये तो बोलिये शरत्पूर्णिमा के ठाकुर की जय
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