महामृत्युञ्जय कवच हिन्दी भाषा टीका सहित
टीकाकार आचार्य सतीश कुमार शास्त्री 9210103470, 9555869444
अथ श्रीमहामृत्युञ्जय कवचम्
भैरव उवाच
श्रृणुष्व परमेशानि कवचं मन्मुखोदितम् ।
महामृत्युञ्जयाख्यस्य न देयं परमाद्भुतम् ||1||
भैरव जी करते हैं - हे देवि! परमेश्वरि! सुनो परम अद्भुत महामृत्युंजय कवच हृदय में धारण करने योग्य और मुख से पाठ करने योग्य है। इस परम गोपनीय कवच को हर किसी को नहीं देना चाहिए ।
--------------------------------------यं धृत्वा यं पठित्वा च श्रुत्वा च कवचोत्तमम् ।
त्रैलोक्याधिपतिर्भूत्वा सुखितोऽस्मि महेश्वरि ||2||
हे महेश्वरि ! इस कवच को धारण करना अथवा पाठ करने और सुनने से भी त्रैलोक्य में प्राणि सुखी हो जाता है।--------------------------------------
तदेववर्णयिष्यामि तव प्रीत्यावरानने ।
तथापि परमं तत्वं न दातव्यं दुरात्मने ||3||
हे वरानने! आपकी प्रीति के लिए ही मैं इसको कहूंगा यह परम तत्व है फिर भी किसी भी दुष्ट को इस कवच को प्रदान नहीं करना चाहिये।
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विनियोगः
अस्य श्री महामृत्युञ्जयकवचस्य भैरव ऋषिः ।
गायत्रीछन्दः मृत्युञ्जयरुद्रो महादेवो देवता |ॐ बीजं जूं शक्तिः। सः कीलकम्।
हौमितितत्वं व चतुर्वर्गसाधने विनियोगः ||4||
इस महा मृत्युंजय कवच के भैरव ऋषि है गायत्री छंद महामृत्युंजय रूद्र महादेव देवता हैं। ॐ बीजं जूं शक्ति सः कीलकं हौं तत्व अपमृत्यु रोग आदि चतुर्वर्ग साधन में,इस प्रकार महामृत्युंजय कवच पाठ में विनियोग है।
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चन्द्रमण्डलमध्यस्थे रुद्रभाले विचिन्त्यते ।
तत्रस्थं चिन्तयेत् साध्यं मृत्युमाप्नोपि जीवित ||5||
रुद्र के मस्तक के मध्य में चन्द्रमा इस रूप का ध्यान करके जो साधक इस महामृत्युंजय कवच का पाठ रूपी साधना करते हैं उनकी मृत्यु निश्चित होने पर भी वह जीवित रहते हैं दीर्घायु होते हैं--------------------------------------
ॐ जूं सः हौं शिरं पातु देवो मृत्युंजयो मम ।
ॐ श्रीं शिवो ललाटं च ॐ ह्रौं भ्रु वो सदाशिव: ॥ ||6||
जूं सः ह्रौं रूप से देव मृत्युंजय मेरे सिर की रक्षा करें ।ॐ श्रीं शिव ललाट ललाट की रक्षा सदाशिव भ्रू की रक्षा करें॥
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नीलकण्ठो वतान्नेत्रे कपर्दी मे वतच्छुती।
त्रिलोचनो वताद् गण्डौ नासा मे त्रिपुरान्तकः ॥
नीलकण्ठ मेरे नेत्रों की, कपर्दी मेरे कानों की श्रवण शक्ति की रक्षा करें। त्रिलोचन भगवान् मेरे कंठ की त्रिपुरांतक नासिका की रक्षा करें--------------------------------------
मुखं पीयूषघटमृदौष्ठौ मे कृत्तिकाम्बरः ।
हनुं मे हाटकेशनो मुखं बटुक-भैरव :॥
पीयूष घट मुख की, हौंठों की कृत्तिकाम्बर रक्षा करेंमेरी थ्योडी की रक्षा हाटकेशनी तथा मुख की रक्षा बटुक भैरव करें।
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कन्धरां कालमथनो गलं गण प्रियोऽवतु।
स्कन्दौ स्कन्दपिता पातु हस्तौ मे गिरिशोऽवतु ॥
गर्दन की काल मथन तथा गले की रक्षा प्रियवतु रक्षा करें। दोनों कंधों की रक्षा स्कन्द पिता करें दोनों हाथों की रक्षा गिरीश करें।--------------------------------------
नखान् मे गिरिजानाथः पायादंगलि संयुतान् ।
स्तनौ तारापतिः पातु वक्षः पशुपतिर्मम ॥
पैरों की अंगुलियों और नाखून की रक्षा गिरिजा नाथ करें, स्तनों की तारा पति रक्षा करें, वक्ष की पशुपति रक्षा करें।--------------------------------------
कुक्षि कुबेर-वरदः पार्श्वौ मे मारशासनः ।
सर्वः पातु तथा नाभिं शूली पृष्ठं ममावतु ॥
कुक्षी की रक्षा कुबेर वरद, पसुलियों की रक्षा मार शासन करें। श्री सर्व मेरी नाभि की रक्षा करें, पीठ की रक्षा शूली करें।--------------------------------------
शिश्नं मे शंकरः पातु गुह्यं गुह्यक-वल्लभः ।
कटिं कालान्तकः पायादूरुमेऽन्धकघातनः ॥
गुप्तांग की रक्षा शंकर जी करें गुह्य की गुह्यवल्लभ रक्षा करें। कमर की कालांतक रक्षा करें अंधक घातक भगवान मेरे ऊरू की रक्षा करें
--------------------------------------जागरूकोऽवताज्जानू जंघे मे कालभैरवः ।
गुल्फो पायाज्जटाधारी पादौ मृत्युंजयोऽवतु ॥
जागरुक मेरी जानू (घुटनो )की काल भैरव जंघा की रक्षा करें । मेरे केश की रक्षा जटाधारी करेंपैरों की रक्षा मृत्युंजय करें।
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पादादिमूर्धपर्यन्तमघोरः पातु मां सदा ।
शिरसः पादपर्यन्तं सद्योजातो ममावतु ॥
अघोर भगवान मेरे पैरों से लेकर सिर तक की रक्षा करें सिर से लेकर पैरों तक की रक्षा सद्योजात भगवान करें।
--------------------------------------रक्षाहीनं नामहीनं वपुः पातु मृतेश्वरः ।
पूर्वे बलविकरणो दक्षिणे कालशासनः
रक्षा हीन जिनका नाम नहीं लिया गया उन अंगों की रक्षा मृतेश्वर भगवान करें पूर्व में बालविकर्ण दक्षिण में काल शासन रक्षा करें।
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पश्चिमे पार्वतीनाथो ह्युत्तरे मां मनोन्मनः ।
ऐशान्यामीश्वरः पायादाग्नेय्यामग्निलोचनः ॥
पश्चिम में पार्वती नाथ और उत्तर में मनोन्मन तथा ईशान में ईश्वर अग्नि कोण में अग्नि लोचन
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नैऋत्यां शम्भुरव्यान्मां वायव्याँ वायुवाहनः ।
उर्ध्वे बलप्रमथनः पाताले परमेश्वरः॥
नैऋत्य में शम्भु और मेरे वायुकोण में वायु वाहन ऊपर की ओर बल प्रमथन तथा पाताल की ओर परमेश्वर रक्षा करें।
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दशदिक्षु सदा पातु महामृत्युंजयश्च माम्।
रणे राजकुले द्यूते विषमे प्राणसंशये ॥
महामृत्युंजय मेरी दसो दिशाओं में , युद्ध क्षेत्र में ,राजाओं से राजकुल में , जुए में तथा विषम परिस्थितियों में । तथा प्राण संकट के समय मेरी रक्षा करें।
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पाया दों जूं महारुद्रो देव-देवो दशाक्षरः।
प्रभाते पातु मां ब्रह्मा मध्याह्ने भैरवोऽवतु ॥
ॐ जूं महारुद्र देव देव दशाक्षर रक्षा करें प्रभात काल में मेरी रक्षा ब्रह्मा जी करें मध्यान काल में भैरव देवता मेरी रक्षा करें ।
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सर्वतत् प्रशमंयातिमृत्युंजय-प्रसादतः ।
धनंपुत्रान् सुखंलक्ष्मीमारोग्यंसर्वसम्पदः ॥
इस प्रकार यह सर्व महामृत्युंजय भगवान के प्रसाद से सुख लक्ष्मी आरोग्यता सर्व संपदा
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प्राप्नोतिसाधकाःसद्योदेविसत्यं नसंशयः ।
इतीदंकवचंपुण्यंमहामृत्युंजयस्यतु ॥
शीघ्र ही साधक प्राप्त कर लेता है इसमें हे देवी कोई संशय नहीं है यह महा मृत्युंजय कवच तो पुण्य प्रद है।
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गोप्यंसिद्धिप्रदंगुह्यंगोपनीयंस्वयोनिवत्।।इतिरुद्रयामलेतन्त्रेदेवीरहस्येमृत्यञ्जयपंचांगेमृत्युंजयकवचंसंपूर्णम्।
परम गोपनीय इस कवच को अपनी योनि की तरह गुप्त रखना चाहिए गुप्त रखना चाहिए इस प्रकार रुद्रयामल तंत्र में देवी रहस्य में महामृत्युंजय पंचांगमें यह कवच संपूर्ण हुआ।
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