नवरात्रि में घट स्थापना संकल्प एवं पूजन विधि Navratri Pooja Vidhi
ज्यौतिषार्य पं सतीश कुमार शास्त्री 9555869444
नवरात्रि में घट स्थापना संकल्प एवं पूजन विधि-
~~~~~~~~~26/9/2022~~~~~~~~~~~
घट स्थापना का समय
बसन्त नवरात्रि में प्रतिपदा तिथि यानि प्रथम नवरात्रि को घटस्थापना का समय है- सुबह 06 बजकर 28 मिनट से लेकर 08 बजकर 01 मिनट तक कलश स्थापना कर करना अति श्रेष्ठ है इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त में घटस्थापना करना भी बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन सुबह 11 बजकर 54 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 42 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा।संकल्प के लिये - दाहिने हाथ की अञ्जलि में सुपारि जल फल पुष्प अक्षत रूपये लेकरके संकल्प करें ।
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संकल्प:
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हरि:ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु : अद्य ब्रह्मनोऽह्नि द्वितीय परार्द्धे श्रीश्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरेऽअष्टाविंशतीतमे कलयुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्विपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्याव्रतैक देशान्तरगते इन्द्रप्रस्थ(दिल्ली)नगरे यमुनाया:पश्चिमे तटे सीतारामबाजारस्य गली आर्य समाजे भगवान् कुटी ममा-टालिकायां मध्ये द्वितीय सतह तलेऽथवा गृह स्थित नल-नामक सम्वत्सरे १९८० शाके १९४५ दक्षिणायणे सूर्ये बसनत ऋतौ महामांगल्यप्रद मासोत्तमे मासे पुण्य पवित्रे मासे चैत मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपदा तिथौ हस्त नक्षत्रे शुक्ल(प्रातः 8:03मि. तक)/ब्रह्म योगे किंस्तुघ्न करणे सोम-वासरे कन्या राशि स्थिते चन्द्रे कन्या राशि स्थिते सूर्ये मीनराशि स्थिते देव गुरौ शेषेषु ग्रहेषु यथा-यथा राशि-स्थान-स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह-गुण-गण विशेषण विशिष्टायां शुभ पुण्य तिथौ अमुक ----------गोत्र, अमुक-------- नामनो अहं श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त पुण्य फल प्राप्त्यर्थं मम सकुटुम्बस्य ऐश्वर्याभि-वृद्ध्यर्थं अप्राप्त-लक्ष्मी प्राप्त्यर्थं प्राप्त लक्ष्म्याश्चिर काल-यावत् संरक्षणार्थं सकल-मन-ईप्सित कामना-सिध्यर्थं , सर्वत्र यशो-विजय-लाभादि प्राप्त्यर्थं पुत्रपौत्राद्यंभि वृद्धर्थं च इह जन्मनि-जन्मान्तरे वा सकल-दुरित-उप-शमनार्थं तथा मम सभार्यस्य सपुत्रस्य सबान्धवस्य अखिल कुटुम्ब सहितस्य समस्त भय व्याधि जरा-पीडा उपमृत्यु परिहार पूरवक आयु आरोग्य रक्षणार्थं ऐश्वर्याभि वृद्धर्थं मम समस्त अखिल कुटुम्बस्य च सकलग्रहाणां तत्सर्वारिष्टं शान्त्यर्थं समस्त शुभ फल प्राप्त्यर्थं पुत्रपौत्रादि सन्तत वृद्धयर्थं आदित्यादि नवग्रहानुकूलता सिद्धयर्थं तथा इन्द्रादिदशदिक्पाल प्रसन्नता सिद्धयर्थं आधि दैविक-आधि-भौतिक- आधि-आध्यात्मि त्रिविध तापोप शमनार्थं कायिक वाचिक मानसिक पाप शमनार्थं धर्मार्थकाममोक्ष चतुर्विध पुरूषार्थ सिद्धयर्थं मम चलित कार्यं उत्तरोत्तर वृद्धयर्थं नवीन कार्य प्राप्त्यर्थं नवीन उत्साह प्राप्त्यर्थं सुख समृद्धि शान्ति प्राप्त्यर्थं अमुक ---------कार्य सिद्धयर्थं श्रीभगवती दुर्गा देवी प्रीतिकाम: अमुक ---------गोत्रस्य अमुक-------- नामनो अहं अमुक-----ब्राह्मण द्वारा श्रीदुर्गा पूजन कर्म एवं श्रीदुर्गासप्तसत्ती पाठं अहं करिष्ये
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सनातन धर्माभिलम्ब-शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान श्रीगणेश जी महाराज की आराधना का प्रावधान बताया गया है। माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता है के अनुसार कलश को भगवान श्री वरुण का प्रतिरुप माना गया है। इसलिये सबसे पहले गणेश गौरी का पूजन किया जाता है। फिर कलश स्थापना करने का प्रावधान है पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिये। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी,मुद्रा रखी जाती है। और पांच प्रकार के पत्तों से जो भी उपलब्ध हो कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे (सात के प्रकार के अनाज या) जौ बौये जाते है। जिन्हें दशमी की तिथि पर दशहरा पूजन में उपयोग किया जाता है। माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है।
कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी कीजो ब्राह्मण द्वारा दुर्गा सप्तशती का पाठ कराते हैं उनको माता दुर्गा जी की पूजा से पहले गणेश पूजन,कलश ओंमकार, श्री, सप्तघृत, मातृका, षोडश मातृका,ब्रह्मा विष्णु महेश तथा शेषनाग, दशदिग्पाल, चतुषष्टीयोगिनी, ग्रह शान्ति के लिये नवग्रह की पूजा, विधिवत् प्रति करना चाहिये।
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नौ दिनों तक नवरात्रि व्रत किया जाता है। कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तक तो नवरात्रि व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु जो व्रत करते हैं वह प्रारम्भ में ही संकल्प लिया करते है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है ऐसा कुछ भी संकल्प करके ही सुनिश्चित करना चाहिये
घट स्थापना या कलश स्थापना विधि
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आसन पर दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जायें ( घूमते-फिरते, पैर फैलाकर और बिना आसन के पूजन करना निषेध है )
इसके बाद अपने आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें
"ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर तीन तीन बार कुशा या पान के पत्ते से छींटें लगायें फिर आचमन करें
१ॐ केशवाय नम:
२ॐ नारायणाय नम:,
३ॐ माधवराय नमः,
(अगले नाम मंत्र से हस्त प्रक्षालन करो हाथ धो दें
ॐ गोविन्दाय नम:
आसन शुद्धि मंत्र बोलें
ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासन
इसके बाद अनामिका अंगुली से अपने ललाट पर चंदन लगाते हुये यह मंत्र बोलें
चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशन
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा
द्वितीय स्थान च
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कलश स्थापना के लिये सर्वप्रथम स्थान का चयन होना आवश्यक है
किस दिशा में
घटस्थापना कौन से स्थान पर करनी चाहिये दिशा क्या होनी चाहिये घट स्थापना के लिए सर्वप्रथम प्रातः काल नित्य क्रिया सम्पन्न करके निवृत हो जायें फिर इसके बाद स्नान करके, नव वस्त्र अथवा स्वच्छ वस्त्र पहन कर ही विधिपूर्वक पूजा आरम्भ करनी चाहिये। पहले नवरात्रि पूजा के दिन मुहूर्त (सूर्योदय के साथ अथवा द्विस्वभाव लग्न में कलश स्थापना करना चाहिये। नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त्त को
शारदीय नवरात्रि में प्रतिपदा तिथि यानि प्रथम नवरात्रि को घटस्थापना का समय है- सुबह 06 बजकर 28 मिनट से लेकर 08 बजकर 01 मिनट तक कलश स्थापना कर करना अति श्रेष्ठ है इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त में घटस्थापना करना भी बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन सुबह 11 बजकर 54 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 42 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा। घटस्थापना के
घट स्थापना करते समय विशेष रूप से शुभ शकुन को भी मानते हैं जैसे कोई छींक दे या किसी अशुभ घटना या अशुभ सूचक शकुन जैसे कुत्ते बिल्ली के रोने का स्व
कलश स्थापना के लिए श्रेष्ठ नहीं है
अपने घर के सर्व श्रेष्ठ उस स्थान को चुनना चाहिये जो पवित्र स्थान हो अर्थात् घर में मंदिर में या मन्दिर सामने निकट ही या मंदिर के पास। यदि इस स्थान में पूजा करने में दिक्कत हो तो घर में ही ईशान कोण अथवा उत्तर-पूर्व दिशा में, एक स्थानका निश्चय करके उसे स्थान को (गांव में कच्चे घरों में गाय के गोबर से लिप कर शुद्ध करते थे) गंगा जल से शुद्ध कर लें
एक मिट्टी के पात्र में जौ बोयें
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सर्वप्रथम जौ बोने के लिये मिट्टी का पात्र लेना चाहिये । इस पात्र में मिट्टी या यमुना/गंगा की रेणुका(रेत) दो परत बिछा ले । इसके बाद जौ बिछा देना चाहिये। इसके ऊपर फिर मिट्टी की या रेत की एक परत बिछायें। अब पुनः एक परत जौ की बिछा ले । जौ को इस तरह चारों तरफ फैलायें ताकि जौ कलश के नीचे पूरी तरह से न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछायें
कलश स्थापना
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पुनः कलश में रोली से स्वास्तिक चिह्न (सांहांतिया चिन्ह) बनाकर गले में तीन वार मौली लपेटे और कलश को एक ओर रख लें।
रोली (कुंकुंम) से अष्टदलकमल चक्र बनाकर भूमि अथवा चौकी पर कलश स्थापित करें। निम्न मंत्र से भूमि का स्पर्श करना चाहिये-
ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धरत्री।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं द्रीं ह पृथिवीं मा हि सीः।।
कलश स्थापन के निम्न मंत्र बोलें तथा कलश को स्पर्श करें -
ॐ आ जिघ्न कलशं मह्यं त्वा विशंतिवन्दवः।
पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नह सहत्रम् धुक्ष्वोरूधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः।।
फिर इस मन्त्र के उच्चारण के बाद कलश में गंगाजल और जल हुआ जल भरें उसके बाद क्रमशः चन्दन-बुरादा, सर्वौषधि = मुरा,चम्पक, मुस्ता, वच, कुष्ठ, शिलाजीत, हल्दी, सठी (केवल गिलोय को भी सर्वसिद्धि कहते हैं) दूर्वा (दूब या हरीघास), पवित्री(कुशा), सप्तमृत्तिका, सुपारी, पञ्चरत्न, द्रव्य कलश में अर्पित करें। और पंचपल्लव(बरगद,गूलर,पीपल,पाकड़,आम) पांच तरह के पेड़ों के पत्ते कलश के मुख पर रखें। तत्पश्चात चावल से भरे पूर्णपात्र को कलश के मुख पर स्थापित करें।
कलश पर नारियल की स्थापना
इसके बाद नारियल को वस्त्र से अलंकृत करें। (नारियल पर लाल कपडा लपेट दें) नारियल पर लाल वस्त्र उसके ऊपर मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश के ऊपर से रखकर स्थिपित करें । कलश के ऊपर नारियल के सम्बन्ध में शास्त्रों में कहा गया है:
“अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृध्यै।
प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”।
अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है तथा नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से यजमान् के रोग बढ़ते हैं और पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिये हमेशा ही नारियल की स्थापना के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि उसका मुख यजमान या पंडित जी के मुख की तरफ रहे। ध्यान रहे नारियल का यजमान की तरफ होता है।
देवी-देवताओं का कलश में आवाहन
यजमान या पूजा करने वाले को अपने दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण एवं गंगादि नदियों, सरोवरों व चारों वेदों और सभी तीर्थों का ध्यान और आवाह्न करना चाहिये –
ॐ भूर्भुवःस्वःभो वरुण! इहागच्छ, इह तिष्ठ, वरुणं स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण। ॐ अपां पतये वरुणाय नमः बोलकर अक्षत और पुष्प कलश पर चढ़ा दें। फिर दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर चारो वेद, तीर्थो, नदियों, सागरों, देवी और देवताओ के आवाहन करना चाहिये👉🏻 गंगा-यमुनादि नदीभ्यो नमः, तीर्थ-गुरु-पुष्करादि देवताभ्यो नमः तीर्थराजप्रयागाय नमः सप्तसागरेभ्यो नमः ऋग्वेदाय नमः आयुर्वेदाय नमः सामवेदाय नमः अथर्ववेदाय नमः
कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः सुप्रतिष्ठता वरदा भवन्तु।
तथा
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः इस मंत्र के उच्चारण के साथ ही अक्षत और पुष्प कलश के पास छोड़ दे।
वरुण आदि देवताओ को —
उसके बाद फिर अक्षत और पुष्प लेकर वरुणादि का ध्यान करें।
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमःध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
मन्त्र का उच्चारण करते हुये पुष्प समर्पित करे और फिर नीचे दिये ग्रे क्रम से वरुण आदि देवताओ को अक्षत छोड़कर, जल चढ़ाये, स्नानीय जल, आचमनीय जल चढ़ाये, पंच्चामृत स्नान कराये, चन्दन मिलाकर स्नान कराये, शुद्ध जल से स्नान कराये, आचमनीय जल चढ़ाये, वस्त्र चढ़ाये, यज्ञोपवीत चढ़ाये, उपवस्त्र चढ़ाये, चन्दन लगाये, अक्षत चढ़ायें, फूल और फूलमाला चढ़ाये, इत्र आदि द्रव्य समर्पित करें (चढ़ायें), दीप दिखायें, नैवेद्य चढ़ायें, सुपारी, इलायची, लौंग सहित पान चढ़ायें, द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये(समर्पयामि) इसके बाद आरती करे। पुनः पुस्पाञ्जलि समर्पित करे, प्रदक्षिणा करें तथा दाहिने हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना करें और अन्त में
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, प्रार्थनापूर्वकं अहं नमस्कारान् समर्पयामि।
इस मंत्र से नमस्कारपूर्वक फूल समर्पित करे। फिर हाथ में जल लेकर अधोलिखित वाक्य का उच्चारण कर जल कलश के पास छोड़ते हुये समस्त पूजन-कर्म वरुणदेव को निवेदित करना चाहिये।
अनेन कृतेन पूजनेन कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम।
अखण्ड ज्योत
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नवरात्रि के पहले दिन से ही अखंड ज्योति जलाई जाती है जो नौ दिन तक लगातार जलती रहती है। इस अखण्ड ज्योति का बीच में बुझना अच्छा नही माना जाता है। अतः इस बात का अवश्य ही धयान रखना चाहिये की अखण्ड ज्योति बुझने पाये अखंड ज्योत को ठीक करने के लिये पहले अखंड ज्योत से दूसरा दीपक जलाये रखें अखंड ज्योत को ठीक कर दें फिर पुनः उस दीपक से अखंड जोत जला दें जो अखंड ज्योत से जलाया था उसीसे
माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु माता का षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिये तथा फिर वह घी किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिये।
देवी पूजन विधि
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चैत्र/आश्विन नवरात्रि का दिन स्वयं सिद्धि मुहूर्त में आता है इसलिये इस दिन घट स्थापना एवं देवी पूजन के लिये पञ्चाङ्ग शुद्धि (मुहूर्त देखने की) आवश्यकता नही होती।
शेष कल लिखेंगे.........
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