श्रीराम की रावण पर विजय दशमी पर्व

- ज्यौतिषाचार्य पण्डित सतीश कुमार शास्त्री 9555869444





गगनं गगनाकारं सागरः सागरोपमः॥ रामरावणयोर्युद्धं रामरावणयोरिव।।
#विजया दशमी महापर्व की हार्दिक शुभकामनायें ।

।।श्रीसीताराम भगवान् की जय।।



श्रीराम की रावण पर विजय दशमी पर्व

राम की रावण पर विजय दशमी पर्व एक वेद विदित पौराणिक ऐतिहासिक मान्यता ही नहीं प्राचीन यह पर्व तो इतिहास की सत्य घटना के साक्ष्य प्रस्तुत करता है।


श्रीमद् वाल्मीकीय रामायण के अनूरूप 

      आदि वाल्मीकि जी ने अनेक प्रमाणों के अनुसार लगातार 84 दिन तक राम रावण युद्ध चला था।

विभिन्न स्थानीय भाषाओं से समृद्ध भारत में विभिन्न संस्कृतियों, पर्वों को अपने ढ़ंग से मनाने की स्वतंत्रता है किन्तु विजय दशमी को सभी भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी बहुत से हिन्दू या गैर हिंदू भी इस पर्व को राम रावण युद्ध के ही माध्यम से जानते हैं और विजय दशमी पर्व मनाते भी हैं अतः यह पर्व अखण्डता का प्रतीक तो यह है ही हजारों वर्ष से चली आ रही परम्परागत त्योहारों की श्रेणी की श्रृंखला में तो एक दूसरे को जोड़ने का काम करता है।


 विभिन्न संस्कृतियों पर अध्ययन करने वाले भारतीय शोधकर्ताओं ने स्वीकार किया है कि विजय दशमी विश्व का एक ऐसा अनूठा त्यौहार है, 

         हमारा देश भारत इसके अन्तिम शासक रहे महाराज श्रीपृथ्वीराज चौहान जी के बाद लगभग 651 वर्षों तक क्रुर  मुगलों और फिर बाद में अंग्रेजों के अधीन रहा।  फिर भी हम अपनी सभ्यता और त्यौहारों को जीवित रख पाये।

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अन्य प्रकार (मार्कण्डेय पुराणादि) से

      इस पर्व के और कई मान्यताओं के कारण हो सकते हैं जैसे-एक और पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं और मानवों पर दुराचार कर रहे महिषासुर पर देवी दुर्गा ने उसका वध कर विजय प्राप्त की और सभी देवताओं ने देवी के क्रोध को शान्त करने के लिये एक विशेष प्रकार का यज्ञ किया, इसीलिये नवरात्र के बाद इसे (दुर्गा के नौ शक्ति रूप की उपासना के उपरान्त) महिषासुर पर विजयोत्सव-दिवस त्योहार   के रूप में विजया-दशमी के नाम से मनाया जाता है।


एक और कथा के अनुसार महिसासुर के वध के उपरान्त भगवती दुर्गा माता जी अपने धाम को वापस जा रहीं थीं, तो यह विजय-यात्रा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

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         देवी भागवत के अनुसार 

"राम रावण का युद्ध लगातार चल रहा था किन्तु राम के सफल ना होने पर प्रभु श्रीराम को नवदुर्गा की पूजा उपासना करनी पड़ी" और फिर बाद में भगवान् श्रीराम ने रावण के साथ युद्ध करके  आज ही के दिन आश्विन शुक्ला दशमी को  रावण का वध किया था।

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वैसे तो हर प्रकार से यह दशहरा है दशमी तिथि के दिन को भी दशहरा कहते हैं लेकिन रावण अपने आप में अकेला नहीं था वह देश(दस संख्या को संस्कृत भाषा में दश कहते और लिखते हैं) शीर्ष (शिरों) वाला, दश राक्षसों के बराबर था । उस "दश" को भगवान ने हरा यानी हरा दिया या मार दिया इसीलिये भी इस त्यौहार को "दशहरा" कहा जाता है 

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        वाल्मीकि रामायण के अनुसार 84 दिन लगातार राम रावण घमासान महायुद्ध चलता ही रहा था। दशहरा के दिन👉🏻 आश्विन शुक्ला दशमी को ही रावण का प्राणान्त हुआ भागवान् राम ने विजय उद् घोष किया। देवता रीछ और वानर, एवं मानवादि सभी हर्षित लोग हुये। श्रीराम चन्द्र की जय जयकार होने लगी। विजयोत्सव-दिवस मनाया गया। आज भी त्योहार   के रूप में विजया-दशमी के नाम से मनाया जाता है।

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       किन्तु राम का जव  रावण के साथ महासंग्राम चला 👉अश्विन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को शुरू हुआ था सिर्फ आठ दिन में ही श्रीराम चन्द्र जी ने युद्ध समाप्त कर रावण का वध कर दिया था।


        रामायण काल में युद्ध, दशहरे के दिन यानि दशमी को रावण वध के साथ ही समाप्त हो गया था।

 रावण की सेना की अनुमानित संख्या 720000000 ( बहत्तर करोड़) थी, इसके बावजूद भी सिर्फ रीछ और वानरों की सेना के सहारे ही भगवान राम ने युद्ध जीता था

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एक बार युद्ध में  श्री राम और दो बार युद्ध में लक्ष्मण हार गये थे, लेकिन फिर भी रावण ने मर्यादा रखी और मूर्छित और युद्ध से अपहृत ही राम सेना पर आक्रमण नही किया था।

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रावण को हराना कितना असम्भव कार्य था

        किन्तु कहीं न कहीं ऐसा उल्लेख भी है कि रावण की सेना में उसके सात पुत्र और कई भाई सेना नायक थे इतना ही उसके पुत्रों अहिरावण और महिरावण ने भी श्री राम और लक्ष्मण का छल से अपहरण कर देवी को वलि देने की कोशिश की थी। रावण स्वयं दशग्रीव था और उसके नाभि में अमृत होने के कारन लगभग अमर था।


रावण का पुत्र मेघनाद ( जन्म के समय रोने की नहीं बल्कि मुख से बदलो की गरज की आवाज आई थी) को स्वयं ब्रह्मा ने इन्द्र को प्राण दान देने पर इन्द्रजीत का नाम दिया था। ब्रह्मा ने उसे वरदान भी मांगने बोला तब उसने अमृत्व माँगा पर वो न देके ब्रह्मा ने उसे युद्ध के समय अपनी कुलदेवी का अनुष्ठान करने की सलाह दी, जिसके जारी रहते उसकी मृत्यु असम्भव थी।


रावण का पुत्र अतिक्या जो की अदृश्य होने पर युद्ध करता था, अगर उसकी मौत का रहस्य देवराज इन्द्र लक्ष्मण को न बताते तो उसकी भी मृत्यु होनी असम्भव थी। रावण का भाई कुम्भकरण जिसे स्वयं नारद मुनि ने दर्शन शास्त्र की शिक्षा दी थी, उससे इन्द्र भी ईर्ष्या करता था ये जान कर की वो अधर्म के पक्ष में है उस कुम्भकर्ण ने अपने भाई रावण के मान के लिये अपनी आहुति दी थी।


       अदृश्य इन्द्रजीत के बाण से लक्ष्मण का जीवित रहना असम्भव ही था, ये सोच कर ही श्रीराम का दिल बैठा जा रहा था कि वो अयोध्या में अपनी माँ को कैसे  मुख दिखा पायेंगे, उनका कलेजा बैठा जा रहा था। लक्ष्मण अगले दिन का सूर्य न देखते अगर हनुमान् जी संजीवनी बूटी वाला पर्वत न उठा लाते ( एक भाई के लिए वो रात कितनी लम्बी लग रही होगी)।

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रावण के पुत्र इन्द्रजीत के नागपाश के कारन श्री राम और लक्ष्मण का अगले दिन तक जीवित रह पाना सम्भव था क्या? तब हनुमान वैकुण्ठ से विष्णु के वाहन गरुड़ को लेके आये और उनके प्राण प्रकार से बच पायें यह सब मैं इसलिये लिख रहा हूॅं कि भगवान् श्री राम मर्यादामय नर लीला कर रहे थे। समस्त वानर सेना जो राम के भरोसे लंका पर चढ़ाई कर चली थी उनके लिये ये रात कितनी लम्बी थी।


अहिरावण और महिरावण शिविर में सोये रामलखन को मूर्छित कर अपहृत कर ले गए और दोनों भाइयो की बलि देने लगे, तब हनुमान ने अहिरावण और महिरावण की ही बलि देदी थी वो रात भी वानर शिविर के लिये किसी युग से कम थी ही नहीं , ऐसे बहुत से विस्मय करने वाले  कारण उपस्थित है जो रामायण के युद्ध को महान् बनाते हैं, युद्ध के चौरासी दिनों में से 👉🏻युद्ध के वे शेष आठ दिन कितने कठिन थे लेकिन वो आठ दिन राम जी की सेना के लिये कितने भारी थे उसके कुछ उदहारण हैं हमारे पास जय श्रीराम प्रभु की

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    यह पर्व जिसके दस सिर थे, इसलिये इस दिन को दशहरा यानी दस सिर वाले के प्राण हरण होने वाले दिन के रूप में भी मनाया जाता है।


सनातन धर्मावलम्बियों के क्षत्रिय जनों द्वारा दशहरा यानी विजय-दशमी एक ऐसा त्‍यौहार है कि जिस दिन क्षत्रिय शस्‍त्र-पूजा करते हैं। जबकि ब्राह्मण उसी दिन अपने शास्‍त्रों की पूजा करते हैं। वैश्य लोग अपने धन की पूजा करते हैं अन्य सभी अपने निज वर्णानुसार कुछ न कुछ पूजा करते ही हैं।


इस पावन पर्व दशहरे की आपको,

आपके पूरे परिवार को बहुत-बहुत शुभकामनायें एवं बधाई।

दशहरा असत्य पर सत्य की विजय है।

आप भी हर पथ पर विजयी हों, यही भगवान् से हमारी मंगल कामना है।

🙏🏻जय श्रीराम, जय हनुमान्   

              आप सभी को राम राम जी   

श्रीभगवान् शम्भु महादेव सदाशिव के द्वारा श्रीराम स्तुति श्रीरामचरितमानस में 

छन्द: ॥

जय राम रमा रमनं समनं ।
भव ताप भयाकुल पाहि जनम ॥


अवधेस सुरेस रमेस बिभो ।
सरनागत मागत पाहि प्रभो ॥


दससीस बिनासन बीस भुजा ।
कृत दूरी महा महि भूरी रुजा ॥


रजनीचर बृंद पतंग रहे ।
सर पावक तेज प्रचंड दहे ॥


महि मंडल मंडन चारुतरं ।
धृत सायक चाप निषंग बरं ॥


मद मोह महा ममता रजनी ।
तम पुंज दिवाकर तेज अनी ॥


मनजात किरात निपात किए ।
मृग लोग कुभोग सरेन हिए ॥


हति नाथ अनाथनि पाहि हरे ।
बिषया बन पावँर भूली परे ॥


बहु रोग बियोगन्हि लोग हए ।
भवदंघ्री निरादर के फल ए ॥


भव सिन्धु अगाध परे नर ते ।
पद पंकज प्रेम न जे करते॥


अति दीन मलीन दुखी नितहीं ।
जिन्ह के पद पंकज प्रीती नहीं ॥


अवलंब भवंत कथा जिन्ह के ।
प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह के ॥


नहीं राग न लोभ न मान मदा ।
तिन्ह के सम बैभव वा बिपदा ॥


एहि ते तव सेवक होत मुदा ।
मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ॥


करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ ।
पड़ पंकज सेवत सुद्ध हिएँ ॥


सम मानि निरादर आदरही ।
सब संत सुखी बिचरंति मही ॥


मुनि मानस पंकज भृंग भजे ।
रघुबीर महा रंधीर अजे ॥


तव नाम जपामि नमामि हरी ।
भव रोग महागद मान अरी ॥


गुण सील कृपा परमायतनं ।
प्रणमामि निरंतर श्रीरमनं ॥


रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं ।
महिपाल बिलोकय दीन जनं ॥


॥ दोहा: ॥
बार बार बर मागऊँ हरषी देहु श्रीरंग।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग॥


बरनि उमापति राम गुन हरषि गए कैलास।
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास॥


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