कल्कि वन्दना Kalki ji Vandana

 रचना आचार्य पं. सतीश कुमार शास्त्री

कल्किं विश्वमयं वन्दे  कल्किं  वन्दे द्विजप्रियम्।
 कल्किं विप्रवरं वन्दे  कल्किं नारायणं भजे।।
कल्किं पद्मापतिं वन्दे  कल्किं  वन्दे  रमापतिम् ।
कल्किं सम्भलजं वन्दे भूभारहरणप्रियम्।।

भावार्थ:-

 विश्व में व्याप्त कल्कि जी की वन्दना करता हूँ । ब्रह्मणों के प्रिये कल्कि जी की वन्दना करता हूँ ।

विप्रवर कल्कि नारायण को

भजता हूँ।

पद्मापति  कल्कि जी की वन्दना करता हूँ ।

रमापति  कल्कि जी की वन्दना करता हूँ ।

 भूमि का भार उतारने वाले प्रिये (श्रीकल्कि) , सम्भल में जन्म लेने वाले  कल्कि जी की वन्दना करता हूँ ।


रचना आचार्य पं. सतीश कुमार शास्त्री

Comments

Popular posts from this blog

दीवाली या दीपावली क्यों मनाई जाती है?

सन् 2022 के अब शेष प्रमुख त्योहारों

आद्य शक्ति दुर्गा के तीन रूप और नौ स्वरूप