छठ पूजा क्या है कोई पौराणिक आधार है
ज्यौतिषाचार्य सतीश कुमार शास्त्री 9555869444, 9210103470
छठ पूजा का क्या कोई पौराणिक आधार है?
पूर्वी उत्तर प्रदेश और खासकर बिहार में छठपूजा विशेष महत्वपूर्ण है। छठपूजा केवल एक पर्व नहीं है, अपितु ये तो एक महापर्व है, जो पूरे चार दिन तक चलता है। नहाये-खाये से इसका प्रारम्भ होता है, जो सूर्यास्त और सूर्योदय के अर्घ्य देने का प्रावधान है।
ये पर्व उत्सव की भाॅंति वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र के महीने में और फिर दूसरी बार ये कार्तिक के महीने में। चैत्र के शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन मनाये जाने वाले छठ पर्व को 'चैती छठ' कहते हैं और कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन तो पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी पर्व को 'कार्तिकी छठ' कहते हैं। यह पर्व कहीं-कहीं सूरज छठ के नाम से भी जाना जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि और मन इच्छित फल प्राप्ति के लिये ये त्यौहार मनाया जाता है। कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी का एक अलग से ऐतिहासिक महत्व भी है।
भगवान श्री राम की भार्या माता सीता जी ने भी की थी भगवान् श्रीसूर्यदेव की ये छटपूजा
छठ पूजा की परिपाटी कैसे प्रारम्भ हुई थी,
इस सम्बन्ध में अनेक कथायें प्रचारित हैं। पहली कथा की मान्यता के अनुसार, जब श्रीराम-मातासीता जी 14 सम्वत् के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध ब्रह्महत्यादिक के पाप से मुक्त होने के लिये उन्होंने ऋषि-मुनियों का आदेश प्राप्त कर के राजसूर्य यज्ञ को करने का निर्माण लिया। इस अनुष्ठान के लिये उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमन्त्रित किया था। महामुनि मुग्दल ऋषि जी ने श्रीराम-मातासीता पर गङ्गाजल छिड़कते हुये पवित्र करने के लिये- ॐ पवित्रेस्थो•••• आदि मंत्रों का उच्चारण किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। इससे सीता माता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान् की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
महाभारत काल में भी हुई थी छठपूजा पर्व
सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार, एक और कथा प्रचालन में है कि छठपूजा पर्व की मान्यता महाभारत काल से अधिक बढ़ गई है। इस त्यौहार को सूर्यषष्ठी के नाम से जाना जाता है महाभारत काल में सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य भगवान् की पूजा करके इसके महत्व बढ़ा दिया है। कहा जाता है कि कर्ण भगवान् सूर्य के परम भक्त ही नहीं थे बेतूल भगवान सूर्य देव और कुन्ती माता के पुत्र हैं और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान् योद्धा बने। तब से लेकर के आज भी छठ पूजा में सूर्य अर्घ्य देने की यही परम्परा प्रचलित है।
पांच पाण्डवों की धर्मपत्नी देवी द्रोपदी जी ने भी रखा था सूर्य छठपूजा व्रत
सूर्यछठपूजा के त्यौहार के बारे में एक कथा और भी है। इस किम्वदन्ती के अनुसार, जब पाडव सारा राजपाठ जुये में हार गये, तब दुखी मन वाली दैवीद्रोपदी ने सूर्यछठ पूजा व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पाण्डवों को सब कुछ वापस मिल गया। लोक परम्परा के अनुसार, सूर्य देव की पत्नी संज्ञा तथा पुत्री यमुना देवी के पूजन का सम्बन्ध है श्रीसूर्य भगवान् और उनकी प्रथम पत्नी संज्ञा जी के पुत्र और पुत्री 👉🏻यमराज और यमुना भाई-बहन का भी है।
ऐसे तो यह व्रत जो है वह भगवान् सूर्य देव की पत्नी संज्ञा की आराधना के रूप में है इसीलिये यह त्यौहार "छठ मैया" के आधारभूत भी प्रचलित छठ मैया के नाम से प्रचलित है इस अवसर पर सूर्य भगवान् की आराधना पुराणों में फलदायी बताई गई है।
देवी भागवत पुराण के अनुसार भगवती सूर्य पत्नी संज्ञा माता ही षष्ठी देवी हैं षष्ठी देवी का यह पर्व "छठ मैया" के नाम से सुप्रसिद्ध है
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह "सन्तान षष्ठी" व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
उपर्युक्त अनेक कथाओं के अलावा भी एक और किम्वदन्ती भी प्रचलित है। पुराणों के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई सन्तान ही नहीं थी। इसके लिये उस प्रियव्रत ने तरह तरह जतन कर कर डाले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब उस प्रियव्रत राजा को सन्तान प्राप्ति के लिये महर्षि कश्यप ने उसे पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का सुझाव दिया। यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मरा पैदा हुआ। राजा के मृत बच्चे की सूचना से पूरे राज्य में शोक छा गया। कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे का अन्तिम संस्कार की तैयारी कर रहे थे, तभी उसी समय आकाश से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा। इसमें बैठी देवी ने कहा, 'मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।' इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्यौहार मनाने की घोषणा कर दी।
किसी भी प्रकार की त्रुटि एवं पौराणिक कथा के संदर्भ में समस्त गलतियों के लिये 👉🏻मैं आचार्य सतीश कुमार शास्त्री क्षमा प्रार्थी हूं 🙏🏻
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