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Showing posts from September, 2022

भगवान् श्रीराम की एक बहन भी थीं

 आचार्य सतीश कुमार 9555869444 भगवान् श्रीराम जी की एक बहन भी थीं, लेकिन रामायण में क्यों रहीं गुमनाम? शान्ता महाराजा दशरथ और कौशल्या की बेटी थीं, जिन्हें अंग देश के राजा रोमपद और कौशल्या की बड़ी बहन वर्षिणी ने गोद लिया गया था. वर्षिणी की कोई संतान नहीं थी. एक बार वर्षिणी अपने पति के साथ अपनी बहन से मिलने अयोध्या आई थीं. वर्षिणी ने मजाक में शांता को गोद लेने की इच्छा जताई. वर्षिणी की ये बात सुनकर राजा दशरथ ने उन्हें अपनी बेटी शांता को गोद देने का वचन दे दिया और इस तरह शांता अंग देश की राजकुमारी बन गईं। शांता ऋषि श्रृंग की पत्नी थीं. शांता और ऋषि श्रृंग के वंशज सेंगर राजपूत हैं । शान्ता के विवाह का कारण शांता को वेद, कला और शिल्प का अनूठा ज्ञान था, वह बहुत सुंदर थीं. एक दिन राजा रोमपद, शांता के साथ बातचीत में व्यस्त थे तभी एक ब्राह्मण मॉनसून के दिनों में राजा से खेती में मदद मांगने आया. रोमपद ने ब्राह्मण की याचना पर ध्यान नहीं दिया. अपनी उपेक्षा से नाराज ब्राह्मण वहां से चले गए. वर्षा के देव इंद्रदेव भी अपने भक्त के इस अपमान से नाराज हो गए. इसलिए मॉनसून के मौसम में वहां बहुत कम वर्षा...

श्रीराम की रावण पर विजय दशमी पर्व

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- ज्यौतिषाचार्य पण्डित सतीश कुमार शास्त्री 9555869444 गगनं गगनाकारं सागरः सागरोपमः॥ रामरावणयोर्युद्धं रामरावणयोरिव।। #विजया दशमी महापर्व की हार्दिक शुभकामनायें । ।।श्रीसीताराम भगवान् की जय।। श्रीराम की रावण पर विजय दशमी पर्व राम की रावण पर विजय दशमी पर्व एक वेद विदित पौराणिक ऐतिहासिक मान्यता ही नहीं प्राचीन यह पर्व तो इतिहास की सत्य घटना के साक्ष्य प्रस्तुत करता है। श्रीमद् वाल्मीकीय रामायण के अनूरूप        आदि वाल्मीकि जी ने अनेक प्रमाणों के अनुसार लगातार 84 दिन तक राम रावण युद्ध चला था। विभिन्न स्थानीय भाषाओं से समृद्ध भारत में विभिन्न संस्कृतियों, पर्वों को अपने ढ़ंग से मनाने की स्वतंत्रता है किन्तु विजय दशमी को सभी भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी बहुत से हिन्दू या गैर हिंदू भी इस पर्व को राम रावण युद्ध के ही माध्यम से जानते हैं और विजय दशमी पर्व मनाते भी हैं अतः यह पर्व अखण्डता का प्रतीक तो यह है ही हजारों वर्ष से चली आ रही परम्परागत त्योहारों की श्रेणी की श्रृंखला में तो एक दूसरे को जोड़ने का काम करता है।  विभिन्न संस्कृतियों पर अध्ययन करने वाले भारतीय शोधकर्ता...

भगवान् का नाम लेना सरल है

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  सुगमं भगवन्नाम                जिह्वा च वशवर्तिनी। तथाऽपि नरकं यान्ति                धिग्धिगस्तु नराधिमान्। नारद पुराण में नारद जी ने कहा है  तथा  गरुड़ पुराण में गरुड़ जी महाराज ने ऐसा कहा है       भावार्थ :- भगवान् का नाम लेना बहुत ही सरल है क्योंकि जिह्वा आपके बस में है फिर भी लोग नरक जाते हैं ऐसे लोगों को  धिक्कार है।     तात्पर्य यह है कि जो लोग भगवान का निरन्तर नाम का  स्मरण करते हैं वे कभी भी नर्क नहीं जा सकते क्योंकि-  समूहं दोषाणां दहन इव तुलं शमयति उनके समस्त पाप रुई के बहुत बड़े ढेर के समान होते हैं जरा सी अग्नि रूपी भगवान नाम संकीर्तन रूपी अग्नि से क्षण भर में जलकर के भस्म हो जाते हैं। आचार्य सतीश कुमार शास्त्री  9555869444, 9210103470

कल्कि वन्दना Kalki ji Vandana

 रचना आचार्य पं. सतीश कुमार शास्त्री कल्किं विश्वमयं वन्दे  कल्किं  वन्दे द्विजप्रियम्।  कल्किं विप्रवरं वन्दे  कल्किं नारायणं भजे।। कल्किं पद्मापतिं वन्दे  कल्किं  वन्दे  रमापतिम् । कल्किं सम्भलजं वन्दे भूभारहरणप्रियम्।। भावार्थ:-  विश्व में व्याप्त कल्कि जी की वन्दना करता हूँ । ब्रह्मणों के प्रिये कल्कि जी की वन्दना करता हूँ । विप्रवर कल्कि नारायण को भजता हूँ। पद्मापति  कल्कि जी की वन्दना करता हूँ । रमापति  कल्कि जी की वन्दना करता हूँ ।  भूमि का भार उतारने वाले प्रिये (श्रीकल्कि) , सम्भल में जन्म लेने वाले  कल्कि जी की वन्दना करता हूँ । रचना आचार्य पं. सतीश कुमार शास्त्री

नवरात्रि में घट स्थापना संकल्प एवं पूजन विधि Navratri Pooja Vidhi

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 ज्यौतिषार्य पं सतीश कुमार शास्त्री 9555869444 नवरात्रि में घट स्थापना संकल्प  एवं पूजन विधि-      ~~~~~~~~~26/9/2022~~~~~~~~~~~ घट स्थापना का समय बसन्त नवरात्रि में प्रतिपदा तिथि यानि प्रथम नवरात्रि को  घटस्थापना का समय है-  सुबह 06 बजकर 28 मिनट से लेकर 08 बजकर 01 मिनट तक कलश स्थापना कर करना अति श्रेष्ठ है  इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त में घटस्थापना करना भी बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन सुबह 11 बजकर 54 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 42 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा। संकल्प के लिये - दाहिने हाथ की अञ्जलि में  सुपारि जल फल पुष्प अक्षत  रूपये लेकरके संकल्प करें । 🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂 संकल्प: ~~~~~~~~~~ हरि:ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु : अद्य ब्रह्मनोऽह्नि द्वितीय परार्द्धे श्रीश्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरेऽअष्टाविंशतीतमे कलयुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्विपे  भारतवर्षे भरतखण्डे आर्याव्रतैक देशान्तरगते इन्द्रप्रस्थ(दिल्ली)नगरे यमुनाया:पश्चिमे तटे सीतारामबाजारस्य गली आर्य समाजे भगवान् कुटी ममा-टालिकायां मध्ये द्वितीय सतह तलेऽथवा गृह स्थित  नल-न...

महामृत्युञ्जय मंत्र मानसिकपूजा, ध्यान,न्यास विनियोग सहित

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  महामृत्युञ्जय मंत्र कल्पितोपचारेण-महामृत्युञ्जय- पूजन-पूर्वकम् १ अधोमुख   कनिष्ठकाङ्गुष्ठाभ्यां गन्धमुद्रां प्रदर्श्य    (कनिष्ठका और अंगूठे से रोली-चन्दन  चढ़ाने की गन्ध मुद्रा दिखाते हुए ॐ लं पृथ्वी-तत्वात्मकं  गन्धं श्रीमद् साम्ब-सदाशिव महामृत्युञ्जय पीतये गन्धविलेपनं  परिकल्पयामि  २  अधोमुख   तर्जनी-अङ्गुष्ठाभ्यां पुष्पमुद्रां प्रदर्श्य (तर्जनी और अंगूठे से फूल चढाने की मुद्रा दिखाते हुये  ॐ हं आकाश-तत्वात्मकं   पुष्पं श्रीमद् साम्ब-सदाशिव महामृत्युञ्जय पीतये पुष्पनिवेदनं परिकल्पयामि  ३  ऊर्ध्वमुख   तर्जनी-अङ्गुष्ठाभ्यां  धूपमुद्रां प्रदर्श्य   (तर्जनी और अंगूठे से धूप की मुद्रा दिखाते हुये  ॐ यं वायु-तत्वात्मकं   धूपं श्रीमद् साम्ब-सदाशिव महामृत्युञ्जय पीतये धूप-घ्रापनं  परिकल्पयामि ४  ऊर्ध्वमुख मध्यमा-अङ्गुष्ठाभ्यां  दीपमुद्रां प्रदर्श्य ( मध्यमा और अंगूठे से फूल चढाने की मुद्रा दिखाते हुये   ॐ रं अग्नि-तत्वात्मकं   दीपं श्रीमद् साम्ब...

सरल तर्पण विधि SARAL TRPAN

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  सरल तर्पण बायें हाथ और दाहिने हाथ की अनामिका अंगुलियों में कुशा निर्मित पवित्री (पैंती) धारण करें। यज्ञोपवीत जनेऊ को सव्य (सीधा)कर लें। तीन कुशाओं को लेकर बाँधकर ग्रन्थी लगाकर कुशाओं का अग्रभाग पूर्व में रखते हुये दाहिने हाथ में द्रव्य, जौ, जल, और अक्षत  लेकर संकल्प पढ़ें।  ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः। हरि: ॐ तत्सदद्यैतस्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे संवत्सर का नाम (----) अमुकसंवत्सरे (----) तमे  ----अमुकमासे,   ----अमुकपक्षे,   ----अमुकतिथौ,    ----अमुकवासरे -------------अमुकगोत्रोत्पन्न: अमुक(  ----)शर्मा (वर्मा, गुप्त:) अहं श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त-फलप्राप्त्यर्थं पितृतर्पण- महम् करिष्ये। 🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸 तदनन्तर एक बड़ा तांबे का बर्तन अथवा एक बड़ा पीतल का बर्तन में या किसी अन्य पात्र में  जो मिट्टी अथवा लोहे का न हो फिर उस पात्र के ऊपर एक हाथ या प्रादेश मात्र लम्बे तीन कुश रखें जिनका अग्रभाग पू...

कल्पितोचार मानसिक पूजा

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 आचार्य सतीश कुमार शास्त्री 9555869444,9210103470 (अनोपचार मानसिक पूजा)   १ अधोमुख  कनिष्ठकाङ्गुष्ठाभ्यां  गन्धमुद्रां प्रदर्श्य (कनिष्ठका और अंगूठे के माध्यम से गन्धमुद्रा दिखाते हुए) ॐ लं पृथ्वी-तत्वात्मकं  (देवता का नाम) पीतये गन्धविलेपनं  परिकल्पयामि  २  अधोमुख  तर्जनी-अङ्गुष्ठाभ्यां  पुष्पमुद्रां प्रदर्श्य (तर्जनी और अंगूठे के माध्यम से  पुष्पमुद्रा दिखाते हुए)  ॐ हं आकाश-तत्वात्मकं   पुष्पं  (देवता का नाम)   पीतये पुष्पनिवेदनं परिकल्पयामि  ३  ऊर्ध्वमुख  तर्जनी-अङ्गुष्ठाभ्यां  धूपमुद्रां प्रदर्श्य (तर्जनी और अंगूठे के माध्यम से धूपमुद्रा दिखाते हुए)  ॐ यं वायु-तत्वात्मकं   धूपं  (देवता का नाम) पीतये धूप-घ्रापनं  परिकल्पयामि ४  ऊर्ध्वमुख मध्यमक-अङ्गुष्ठाभ्यां  दीपमुद्रां प्रदर्श्य (मध्यमक और अंगूठे के माध्यम से दीपमुद्रा दिखाते हुए)  ॐ रं अग्नि-तत्वात्मकं   दीपं  (देवता का नाम)   पीतये दीप -दर्शनं...

महामृत्युञ्जय कवच हिन्दी भाषा टीका सहित

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 टीकाकार आचार्य सतीश कुमार शास्त्री 9210103470, 9555869444   श्रीमहामृत्युञ्जय भगवान्  अथ श्रीमहामृत्युञ्जय कवचम्  भैरव उवाच श्रृणुष्व परमेशानि कवचं मन्मुखोदितम्‌ । महामृत्युञ्जयाख्यस्य न देयं परमाद्भुतम्‌ ||1||     भैरव जी करते हैं - हे देवि! परमेश्वरि! सुनो परम अद्भुत महामृत्युंजय कवच हृदय में धारण करने योग्य और मुख से पाठ करने योग्य है। इस परम गोपनीय कवच को हर किसी को नहीं देना चाहिए । -------------------------------------- यं धृत्वा यं पठित्वा च श्रुत्वा च कवचोत्तमम्‌ । त्रैलोक्याधिपतिर्भूत्वा सुखितोऽस्मि महेश्वरि ‌ ||2||     हे महेश्वरि ! इस कवच को धारण करना अथवा पाठ करने और सुनने से भी त्रैलोक्य में प्राणि सुखी हो जाता है। -------------------------------------- तदेववर्णयिष्यामि तव प्रीत्यावरानने । तथापि परमं तत्वं न दातव्यं दुरात्मने ||3||       हे वरानने! आपकी प्रीति के लिए ही मैं इसको कहूंगा  यह परम तत्व है फिर भी किसी भी दुष्ट को इस कवच को प्रदान नहीं करना चाहिये। -------------------------------------- विनियोगः अस्य श्...

श्री पद्मावती महालक्ष्मी स्तोत्रम्

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  आचार्य पं. सतीश कुमार शास्त्री रचित🙏😊 🔆🔆🔆🔆🔆🔆🔆  श्रीपद्मावती महालक्ष्मी स्तोत्रम् पद्म सुवदनां देवीं पद्मस्थितां हरिप्रियाम्। पद्मां पद्मावतीं देवीं नमामि कल्कि बल्लभाम् ।।१।। प्रसन्नवदनां देवीं सर्वदा चस्मितमुखीम्। पद्मां पद्मावतीं देवीं नमामि कल्कि बल्लभाम् ।।२।। सम्भलेश प्रियां  देवीं सिंहले कृतजन्मनीम्। पद्मां पद्मावतीं देवीं नमामि कल्कि बल्लभाम् ।।३।। कमलां त्वां महालक्ष्मीं महादारिद्रनाशिनीम् । पद्मां पद्मावतीं देवीं नमामि कल्कि बल्लभाम् ।।४।। सर्वयोग-समन्वितां धनदां अपराजिताम्। पद्मां पद्मावतीं देवीं नमामि कल्कि बल्लभाम् ।।५।। शङ्ख-पद्मधरां सौम्यां वरदाभय हस्तकाम्। पद्मां पद्मावतीं देवीं नमामि कल्कि बल्लभाम् ।।६।। महाकारुण्य-रूपां च महाधन- प्रदायिनीं पद्मां पद्मावतीं देवीं नमामि कल्कि बल्लभाम् ।।७।। कमले! भवभीतोSहं सर्व-दारिद्र-हारिणीं । पद्मां पद्मावतीं देवीं नमामि कल्कि बल्लभाम् ।।८।। चपलां चञ्चलां पद्मां धनालय-निवासिनीम्। पद्मां पद्मावतीं देवीं नमामि कल्कि बल्लभाम् ।।९। त्वां श्रियं पद्महस्तां च त्वां विष्णु-बल्लभां भजे । -पद्मां पद्मावतीं देवीं नमामि ...

कल्किपुराण अति संक्षिप्त कथा

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            🔆 कल्किपुराणसंक्षिप्त 🔆    ॐ कल्कि भगवते नमः    श्री कल्कि पुराण एक उपपुराण है -श्रीमद् भागवत महापुराण का ही शेष अंश है क्योंकि श्रीमद्भागवत पुराण की कथा सुनते हुए राजा परीक्षित को 7 दिन पूरे होने वाले थे तक्षक नाग ने अपना काम पूरा किया और श्री सुखदेव जी ने कथा को विराम दिया भगवान कल्कि की द्वादश स्कंध में मात्र संभल ग्राम में जब सूर्य बृहस्पति और चंद्र एक राशि पर पुष्य नक्षत्र पर होंगे भगवान संभल ग्राम में जन्म लेंगे मात्र यही परिचर्चा करके श्रीमद् भागवत का पारायण पूरा हो चुका था फिर मार्कंडेय मुनि के माध्यम से श्री कल्कि उप पुराण की कथा प्रारम्भ हुई श्रीमद्भागवत महापुराण में 12 स्कन्धों में 18000 श्लोक बताए जाते हैं जो पूरे नहीं हैं श्रीमद्भगवत महापुराण में महात्म्य भी मिला कर  कुल 14148 श्लोक मात्र हैं श्रीकल्कि पुराण में कुल 35 अध्याय हैं l तीन अंशों में विभक्त है, प्रथम तथा द्वितीय अंश में 7-7 अध्याय हैं  , तृतीय अंश में 21 अध्याय हैं 1359 श्लोक हैं l इस पुराण में भगवान् विष्णु के 24वें श्रीकल्कि अवतार का चरि...

आद्य शक्ति दुर्गा के तीन रूप और नौ स्वरूप

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                                                     आद्य भगवती शिवा                महाकाली              महालक्ष्मी              महासरस्वती  सृष्ट्वाSखिल जगदिदं सदसत्स्वरूपम्, श क्त्या स्वया त्रिगुणया परिपातिविश्वम्। संहृत्य कल्प समये रमते तथैका, तां सर्व-विश्व जननीं मनसा स्मरामि।। (देवी भागवत१/२/५) भावार्थ -: जिन भगवती से सृष्टि हुई है सहारा अखिल जगत उत्पन्न हुआ है, जो सद- सत् स्वरूपा है स्वयं जो त्रिगुणात्मिका( ब्रह्माणी; कमलानी ; रुद्राणी) (अथवा महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती) शक्ति हैं जो इस विश्व की रक्षा करने में तत्पर हैं कल्प के अंत में जो सब कुछ विनाश करके फिर उसी विश्व की पुनः रचना कर उस में रमने वाली एक मात्र जो हैं- उन भगवती की जो सब की जननी हैं उनका मन से ध्यान करता हूँ । अर्धनारीश्वर  में स्थित शिवा आदि भवानी दुर्गा के ती...

पितृयज्ञ रूप पितृतर्पण Pitritarpan

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  पितृतर्पण (विधि एवं मन्त्र) 🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵 ज्यौतिषाचर्य पं. सतीश कुमार शास्त्री 9555869444, 9210103470  〰〰〰〰〰〰〰〰 🔆🔆🔆🔆🔆🔆     पितृ यज्ञ कैसे करें? तर्पण की क्या विधि है? ऐसा बहुत से लोग पूछते ही रहते हैं हव्य (पितरों के लिए हवन करना) काव्य (गाय के लिए कच्चा भोजन निकालना), बलिवैश्वदेव (विश्वेदेव के लिए बलि ) एवं तर्पण तथा ब्राह्मण भोजन ये कुछ पितृ यज्ञ में आते हैं  सबसे आवश्यक है पितृ तर्पण  क्योंकि नित्य कर्म पूजा पद्धति में बताया गया है की पितरों का तर्पण ना करने से वे शरीर के रक्त का शोषण करते हैं  - "आतर्पिता: शरीराद्रुधिरं पिबन्ति"   अब तर्पण की रूपरेखा को समझते हुए तर्पण करते हैं   प्रातःकालीन पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुशा या अन्य किसी पवित्र आसन पर बैठ जायें फिर अपने ऊपर गंगाजल छोड़ कर के पवित्री मंत्र उच्चारण करें- ॐ पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः। तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम्॥ ॐ केशवाय नमः  ॐ नारायणाय नमः ॐ माधवराय नमः  बोलकर तीनों ...